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एनजीओ का दावा- दिल्ली में हर दिन गुम हो रहे हैं गरीब परिवारों के 20 बच्चे

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Hindustan samachar Press confrence for Missing Children in Delhi with Navsrishti Ngo

– कोरोना काल में बढ़े मामले, ज्यादातर मामले बाहरी और पूर्वी दिल्ली के

– पुलिस गुम होने वाले बच्चों का डाटा समय पर नहीं करती है अपडेट

– अंग तस्करी और वेश्यावृत्ति के लिए होती है बच्चों की चोरी

नई दिल्ली, 30 मई (हि.स.)। देश की राजधानी दिल्ली में हर दिन 20 बच्चे गुम होते हैं। गुम होने वाले बच्चों की उम्र ज्यादातर 10 से 16 साल के बीच होती है। सबसे ज्यादा बच्चे संगम विहार, प्रेम नगर, केराड़ी, नजफगढ़ समेत बाहरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली से होते हैं।

इस बात का दावा सोमवार को महिला प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गैर सरकारी संस्था ‘नव सृष्टि’ संस्था की सचिव रीना बनर्जी और सुषमा ने किया। रीना बनर्जी ने बताया कि देश की राजधानी दिल्ली में मानव तस्कर इस कदर सक्रिय हैं कि औसतन हर दिन यहां से 20 बच्चे गायब हो रहे हैं। गायब होने वाले अधिकतर बच्चे गरीब परिवार से हैं और उनके माता-पिता माइग्रेंट लेबर हैं।

उन्होंने कहा कि बच्चों के गायब होने का पता चलने के बाद माता-पिता और परिवार के लोग पहले तो सो तीन दिन तक खुद से अपने बच्चे की तलाश करते हैं और न मिलने पर पुलिस के पास जाते हैं लेकिन तब तक बच्चा बहुत दूर जा चुका होता है। उन्होंने कहा कि गुमशुदा बच्चों को तलाशने के लिए सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि दूरदर्शन के अलावा अन्य सभी चैनल गुमशुदा बच्चों की तस्वीरों को दिखाएं। इससे चोरी करने वाले गिरोह को पकड़ने और बच्चों को ढूंढने में मदद मिलेगी।

सुषमा शर्मा ने बताया कि गुम होने वाले अधिकतर बच्चों की उम्र 10 से 16 साल के बीच होती है। इनमें 11 साल तक के बच्चों का इस्तेमाल अंग तस्करी के लिए होता है तो लड़कियों का वेश्यावृत्ति के लिए। उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस भी गुमशुदा बच्चों के डाटा को अपडेट नहीं करती है जिसकी वजह से भी कई बार गुम होने वाले बच्चों का आंकड़ा गड़बड़ा जाता है। उन्होंने बताया कि बच्चों को मानव तस्करों से बचाने के लिए उन्हें समूह में जागरूक किया जा रहा है और उनके परिजनों को भी। इससे हम उम्मीद करते हैं कि कुछ बदलाव आएगा।

निर्मल कौर ने नेब सराय इलाके की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह से इलाके के दबंग स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों को परेशान करते हैं और उनके परिजन डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाते हैं। इतना ही नहीं पार्कों पर भी कब्जा कर लिया गया है जिससे कोरोना काल में बच्चे घरों में बंद रहने के कारण मानसिक रूप से तनाव में आ गए हैं।

Source: https://www.hindusthansamachar.in